भगत सिंह पर निबंध (2021)- Bhagat Singh Essay in Hindi

शुरुआत से ही हमारी भूमि शूरवीरों और योद्धाओ की भूमि रही है। इन शूरवीरों ने देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था और आज हम ऐसे ही एक शूरवीर और अमर क्रान्तिकारी के बारे में जानने वाले है, जिनका नाम शहीद भगत सिंह है। वह एक क्रान्तिकारी के अलावा लेखक और वक्ता भी थे। उन्होने हस्ते-हस्ते देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। उनके इस बलिदान से देश के युवा काफी प्रभावित हुए और वो भी अपना सब कुछ कुरबान करने के लिए तैयार हो गए। इसलिए कहा जाता है कि भगत सिंह ने अपने मरने के बाद भी देश की आज़ादी का काम नहीं छोड़ा था।

 

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भगत सिंह का शुरुआती जीवन

28 सितंबर, 1907 को भगत सिंह का जन्म भारत के लायलपुर ज़िले में बंगा नामक एक गाव में हुआ था, जो आज पाकिस्तान में है। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह संधू और माता का नाम विद्यावती कौर था।भगत सिंह का जन्म ही एक ऐसे परिवार में हुआ था, जो पहले से भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में जुड़े हुए थे।क्योकि जिस दिन भगत सिंह का जन्म हुआ उसी दिन उनके पिता सरदार किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह को अंग्रेजों के द्वारा जेल से रिहा किया गया था। 

जिसकी वजह से उनके घर में खुशीया और भी बढ़ गई।  पिता और चाचा की जेल से रिहा होने की खुशी में उनकी दादी ने भगत सिंह का नाम भागो वाला रखा था। इसका अर्थ होता है अच्छे नशीब वाला। लेकिन बाद में सभी लोग उनको भगत सिंह कहने लगे थे। उनके दादा अर्जन सिंह, पिता सरदार किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह तीनों उस समय के बहुत ही लोकप्रिय नेता थे। यह सब गांधीवादी विचारधारा का समर्थन करके अंग्रेजों का जमकर विरोध करते थे। इन सबको देख कर ही भगत सिंह के अंदर बचपन से देशभक्ति की भावना पैदा हुई थी। उन्होने केवल 14 वर्ष की उम्र से ही क्रांतिकारी संस्थाओ में काम करना शुरू कर दिया था।

 

भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा

भगत सिंह ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव में पूरी की और आगे की पढ़ाई करने के लिए उन्होने लाहौर की डीएवी स्कूल में दाखिला लिया। इस स्कूल में भगत सिंह की देश प्रेम की भावना को और बल मिला, क्योकि यहाँ उनकी मुलाक़ात जयचन्द विद्यालंकार, भाई परमानन्द और आचार्य जुगलकिशोर जैसे बड़े-बड़े क्रान्तिकारियों से हुई। 

इसके बाद साल 1923 में उन्होने EF की परीक्षा पास कर ली, लेकिन जब गांधीजी ने अंग्रेज़ो का विरोध करने के लिए सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों का बहिष्कार करने को कहा तो भगत सिंह ने 13 साल की उम्र में ही स्कूल छोड़ दिया था। उसके बाद उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया और बाकी की पढ़ाई वहा पूरी की। भगत सिंह ने इसी कॉलेज में रहकर यूरोपीय क्रांतिकारी आंदोलनों का बहुत गहराई से अध्ययन किया। इसके साथ-साथ वो कॉलेज में कई क्रान्तिकारी गतिविधियों में भी भाग लिया करते थे।

 

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भगत सिंह का राजनीति में प्रवेश और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी

यह तो संभव ही नहीं था कि भगत सिंह राजनीति में न आए, क्योकि उनका तो जन्म ही देशभक्त परिवार में हुआ था। शूरवीरों और क्रांतिकारीयो की कहानियां सुन-सुन कर वो बड़े हुए थे। इसके अलावा जब वो विद्यालय में थे तब उनकी मुलाक़ात लाला लाजपतराय, रास बिहारी बोस और अंबा प्रसाद जैसे बड़े क्रांतिकारीयो हुई। इन क्रांतिवीरों से भगत सिंह काफी प्रभावित हुए। उस समय उनकी उम्र केवल 9 साल थी।

13 अप्रैल 1919 के दिन जलियावाला बाग हत्याकांड हुआ था। उस नरसंहार को देख कर भगत सिंह बेहद परेशान हो गए। इस हत्याकांड के कुछ दिन बाद भगत सिंह जलियावाला बाग गए और उस बाग की कुछ मिट्टी को एक स्मारिका के रूप में अपने पास रखने का फैसला किया। अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने की अपनी इच्छाशक्ति को इसी दिन उन्होने मजबूत किया था।

साल 1920 के सविनय अवज्ञा आंदोलन को देखकर तो उनका देशभक्ति का जोश चरम सीमा पर पहुँच गया।उसके बाद 1922 में लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन पर क्रान्तिकारियों ने ब्रिटिश सरकार के सरकारी खजाने को लूटा। उन क्रान्तिकारियों में से अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल और गेंदालाल को ब्रिटिश सरकार ने पकड़ लिया। अंग्रेज़ो ने रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सज़ा दी।जिसकी वजह से क्रान्तिकारियों का पूरा दल बिखर गया। लेकिन तभी भगतसिंह ने साल 1925 में सक्रिय रूप से राजनीति में प्रवेश किया। उन्होने फिर से क्रान्तिकारियों के दल को संगठित करने के लिए चंद्रशेखर आजाद से मुलाक़ात की।

अब फिर से क्रान्तिकारियों का पूरा दल एकत्र हुआ। यह लोग अंग्रेजों के विरुद्ध बम, पिस्तौल और कई खतरनाक हथियार एकत्र करने लगे। जिसकी वजह से ब्रिटिश सरकार भी डर ने लगी। इसलिए साल 1927 में ब्रिटिश सरकारने दशहरे की शोभायात्रा पर बम फेंकने का झूठा आरोप लगाकर भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया। अंग्रेज़ो ने भगत सिंह को 15 दिनों तक शारीरिक और मानसिक तकलीफ दी और उसके बाद अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट ने उन पर गंभीर आरोप लगाकर 40,000 की जमानत राशि मांगी। यह उस समय की बहुत बड़ी रकम थी, लेकिन दो देशभक्त नागरिकों ने भगत सिंह की सहायता करके उनको ब्रिटिश सरकार से आज़ाद कराया।

उसके बाद वह एक डायरी (पत्रिका) में काम करने लगे। लेकिन उन्होने देश को आज़ाद कराने का अपना लक्ष्य बदला नहीं था। अब वो पत्रिका के माध्यम से लोगो तक अपने क्रांतिकारी विचार पहोचाते थे। उन्होने अपने पुराने क्रांतिकारी दल का पुनर्गठन किया और एक गुप्त बैठक भी की। अब इस पुनर्गठन दल का नाम हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी रखा गया था। इसी वक्त 1928 को साइमन कमीशन भारत में लाया गया। इस कमीशन का भारत के कई राजनीतिक संगठनों ने बहिष्कार किया। क्योंकि इस कमीशन में किसी भी भारतीय व्यक्ति को शामिल ही नहीं किया गया था।

लाला लाजपत राय ने साइमन कमीशन का जमकर विरोध किया और उन्होने इसके खिलाफ लाहौर स्टेशन पर एक जुलूस भी निकाला। लेकिन उसी समय अंग्रेज़ अफसर साण्डर्स ने इन लोगो पर लाठीचार्ज कर दिया और बहुत बेरहमी से उनको मारा। जिसकी वजह से कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए और लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गयी। इस घटना से भगत सिंह को काफी आघात पहुंचा और चद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु और सुखदेव की मदद से लाला जी की मौत का बदला लेने का फैसला किया।

इन सभी ने मिलकर लाला जी की मृत्यु के ठीक एक महिने बाद सांडर्स को गोली मार कर हत्या कर दी। इससे पूरा भारत भगत सिंह और उनके दल की प्रशंसा करने लगा। लेकिन उसके बाद ब्रिटिश सरकार हर तरफ भगत सिंह और उनके साथीदारों को ढूंढ ने लगी। भगत सिंह और उनके दल कलकत्ता चले गए और वहा बंगाली वेश धारण करके फिर से काम करने लगे। वहाँ उन्होने बम बनाना भी सीखा। 

उसके बाद उन्होने फैसला किया कि अब वो दिल्ली की केन्द्रीय असेम्बली में बम फेकेंगे। इसके लिए खुद भगतसिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने 18 अप्रैल 1929 को दिल्ली की असेम्बली में बम फेंककर यह नारा लगाया- इंकलाब जिन्दाबाद और अंग्रेज साम्राज्यवाद का नाश हो। लेकिन तभी अंग्रेज सरकार ने भगतसिंह को गिरफ्तार कर लिया और 6 जून 1929 को दिल्ली के सेशन जज ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई।

 

भगत सिंह की फांसी रुकवाने के कुछ प्रयास

भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को धारा 129, 302 तथा विस्फोट पदार्थ अधिनियम 4, 6 के तहत फांसी की सजा सुनायी गई थी। लेकिन भगत सिंह अब भारत के सबसे प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। इसलिए उनको बचाने के लिए और फांसी की सजा को माफ कराने के लिए कई प्रयास हुए। जिसमें सबसे पहला प्रयास उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन मालवीया ने किया था। उन्होने वाइसरॉय के समक्ष भगत सिंह की माफ़ी के लिए विनंती कि परंतु उनके माफ़ीनामे पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया, 

उसके बाद गांधी जी ने भी भगत सिंह की माफ़ी के लिए उस समय के वाइसरॉय से मुलाकात की, परंतु इसका भी कोई विशेष फायदा नहीं हुआ। लेकिन भगत सिंह इसके बिलकुल खिलाफ थे। उनका मानना था कि इन्कलाबियों को मरना ही होता है। क्योंकि जब एक क्रांतिकारी मरता है, तब उनका अभियान और भी मज़बूत होता है।

 

भगत सिंह की मृत्यु और उनका देह संस्कार

आखिरकार वो दिन आ ही गया, जिस दिन भारत के तीन वीरों को फांसी होने वाली थी। 23 मार्च, 1931 के दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को नियमों के विरुद्ध फांसी की सजा दी गयी। जब इन्हे फांसी की सजा दी जा रही थी तब उनके चेहरे पर जरा सा भी डर नही था। मेरा रंग दे बसंती चोला जैसे आजादी के गाने गाते-गाते सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह फांसी पर चढ़ गए।

कहा जाता है कि इन तीन वीरो को फांसी देने के बाद लोग आंदोलन पर न आ जाए इस डर से ब्रिटिशरो ने उनके शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े कर मिट्टी के तेल से सतलुज नदी के किनारे जला दिया था। लेकिन भीड़ ने कुछ जलता देख सतलुज नदी के किनारे पहोंच गए। लोगों को आता देख अंग्रेज वहा से भाग गए। उसके बाद लोगों ने उनके शरीर के टुकड़ों को पहचान कर उनका विधिवत दाह संस्कार किया था। 

हमे यह बात कभी नहीं भुलनी चाहिए कि हमारे वीरों ने अपने शरीर के टुकड़े करवाकर हमे आज़ादी दिलाई है। लेकिन आज का हमारा युवा भटक गया है और वो अंग्रेज़ो की पश्चिमी संस्कृति को अपना रहा है। देश के लिए आज हमें जान देने की जरूरत नहीं है, बल्कि अगर देश के विकास में हम थोड़ा भी योगदान दे तो वह भी हमारे लिए बहुत है।

 

निष्कर्ष 

गाँधी जी के विचारों का भगत सिंह समर्थन करते थे, लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए भगत सिंह ने गांधीवादी शैली नहीं अपनाई थी। वह लाल-बाल-पाल के तरीकों में विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि अहिंसक आंदोलनो से कुछ भी हांसिल नहीं होता। संघर्ष से ही हम अंग्रेजों को देश से बाहर निकाल सकते है।भगत सिंह ने उस रास्ते को अपनाया था, जिसमें देश की आज़ादी के लिए अहिंसा का नहीं बल्कि हिंसा और ताकत का उपयोग किया जाता था। इसीलिए कई लोग उन्हें नास्तिक, साम्यवाद और समाजवादी कहते थे। 


FAQ

Q : भगत सिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?

ANS : 28 सितंबर, 1907 को भगत सिंह का जन्म भारत के लायलपुर ज़िले में बंगा गाव में हुआ था, जो आज पाकिस्तान में है।

Q : भगत सिंह का शुरुआती नाम क्या था ?

ANS : भागो वाला 

Q : भगत सिंह का नारा क्या था ?

ANS : इंकलाब जिन्दाबाद और अंग्रेज साम्राज्यवाद का नाश हो.

Q : भगत सिंह को फांसी कब हुई ?

ANS : 23 मार्च, 1931


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