स्वामी विवेकानंद पर निबंध (2022)- Essay on Swami Vivekananda in Hindi

भारत की भूमि पर अनेक विद्वानों, ऋषि-मुनियों और महान पुरुषों ने जन्म लिया है। इन लोगो की वजह से ही आज विश्व में भारत का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। इन महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद का नाम भी शामिल है। स्वामी विवेकानंद ने अपने कार्यो से पूरे विश्व में भारत को प्रसिद्ध किया था। उन्होने वेद और सनातन धर्म के साथ-साथ अमन और भाईचारे का संदेश लोगो तक पहोंचाया था। इसलिए तो आज के आधुनिक युवा भी स्वामी जी को अपना आदर्श मानकर उनका अनुसरण करते है।

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स्वामी विवेकानंद का शुरुआती जीवन 

12 जनवरी 1863 को स्वामी जी का जन्म कलकत्ता के शिमला पल्लै में हुआ था। शुरुआती दिनो में उनका नाम नरेन्द्र दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। स्वामी जी के पिता कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत करते थे। स्वामी विवेकानंद बचपन में ही अपने पिता के तर्कपूर्ण मस्तिष्क और माता के धार्मिक स्वभाव से बहोत प्रभावित थे।

उन्होंने अपनी माँ से आत्म नियंत्रण का पाढ़ सीखा था। आत्म नियंत्रण का उपयोग करके वह आसानी से समाधी की परिस्थिति में प्रवेश कर सकते थे। स्वामी जी को सिर्फ 5 साल की उम्र में ही मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूट में प्रवेश दिलाया गया। उसके बाद साल 1879 में उच्च शिक्षा के लिए उनको जनरल असेम्बली कालेज में प्रवेश दिलाया गया। यही पर स्वामी जी ने साहित्य, इतिहास और दर्शन जैसे विषयों का अध्धयन किया था।

अपनी युवा अवस्था में स्वामी विवेकानंद ब्रह्मसमाज से परिचित हुए और वही श्री रामकृष्ण के संपर्क में आए थे।रामकृष्ण दक्षिणेश्वर काली मंदिर के एक पुजारी और उच्च कर्म के एक आध्यात्मिक व्यक्ति थे। उनकी यही आध्यात्मिकता से प्रभावित होकर स्वामी विवेकानंद ने श्री रामकृष्ण को अपना गुरु स्वीकार कर लिया था। स्वामी विवेकानंद एक सच्चे गुरुभक्त थे। क्योंकि उनको प्रसिद्धि मिलने के बाद भी वह कभी अपने गुरु रामकृष्ण को नहीं भूले थे।

उन्होने अपने गुरु के नाम से ही रामकृष्ण मिशन की स्थापना की और गुरु का नाम पूरे विश्व में रोशन किया था।कुछ समय बाद वह बोरानगर नामक एक मठ में अपने साधु-भाईयों के साथ रहने लगे। उसके बाद स्वामी जी ने पूरा भारत भ्रमण करने का फैसला किया था। हिन्दू धर्म को आधुनिक भारत में पुनर्जीवित करने का श्रेय स्वामी विवेकानंद को जाता है।

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स्वामी विवेकानंद के विचार

स्वामी विवेकानंद को भारतीय शास्त्रीय संगीत, हिन्दू शास्त्र, खेलजगत, और शारीरिक व्यायाम में बहुत ज्यादा रुचि थी। वह एक धार्मिक व्यक्ति थे। उन्होने ना सिर्फ भारत में बल्के पूरे विश्व में हिंदू धर्म का सही ज्ञान फैलाया था। जिसकी वजह से स्वामी जी ने लोगो में एक नई सोच का निर्माण किया था। इसके अलावा जब स्वामी जी के पिता की मृत्यु हुई, तब उनके घर की हालत काफी खराब हो गयी थी। अब उनके घर में कोई कमाने वाला नहीं था। इसलिए घर की सभी ज़िम्मेदारी स्वामी विवेकानंद पर आ गई। लेकिन ऐसी हालत में भी उन्होने अपने धर्म को नहीं छोड़ा।

कई बार वो खुद भूखे रहते, लेकिन गरीबो को खाना खिलाना नहीं भूलते थे। स्वामी विवेकानंद कई बार खुद वर्षा में भीग कर अथिति को विश्राम के लिए अपना बिस्तर दे देते थे। हर मनुष्य के प्रति उनका व्यवहार सरल और विनम्र था। यह सभी चिज़े दर्शाती है कि स्वामी विवेकानंद के विचार और उनका चरित्र कैसा था। उनके यही राष्ट्रवादी विचारों ने भारत के बड़े-बड़े नेताओं का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया था। इसलिए तो हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी उनकी प्रशंसा की थी।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने स्वामी जी के बारे मे कहा था कि स्वामी विवेकानंद वह व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत और हिन्दू धर्म को बचाया था। सुभाष चन्द्र बोस ने भी स्वामी विवेकानंद को आधुनिक भारत का निर्माता कहा था। इसके अलावा जमशेद जी टाटा, अरबिंदो घोष और सर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने स्वामी विवेकानंद को भारतीय राष्ट्रवाद का मसीहा कहा है। सच में, स्वामी विवेकानंद के विचार और उनका व्यक्तित्व जबरदस्त था।

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स्वामी विवेकानंद और विश्व धर्म सम्मेलन

साल 1893 में अमेरिका के एक शिकागो शहर में विश्व धर्म सम्मेलन हो रहा था। वहाँ पर स्वामी विवेकानंद को भारत के प्रतिनिधि के तौर पर खेतड़ी के महाराज ने भेजा। स्वामी जी शिकागो के लिए 31 मई 1893 को रवाना हुए और वहाँ पर उन्होने जबरदस्त भाषण दिया। उन्होने अपने भाषण की शुरुआत प्रिय बहनों एवं भाइयों के वाक्य से करी। यह सुनकर सारे लोग आश्चर्यचकित हो गए।

भाषण के प्रारंभ से ही सारे दर्शको ने तालियों की गड़गड़ाहट शुरू करदी। वहा पर मौजूद कई लोग सोच ने लगे कि इस व्यक्ति से ना कभी हमारी मुलाकात हुई और ना ही जान-पहचान। लेकिन फिर भी इसने हमें अपना भाई और बहन कहकर संबोधित किया और उसमें भी खासकर पहले स्त्रियों को संबोधित किया। उसके बाद स्वामी जी ने भारत की संस्कृति, सभ्यता, अध्यात्म और हिन्दू धर्म के बारे में बोलना शुरू किया। उन्होने बहुत गहराई से इन चीज़ों को समझाया।

स्वामी विवेकानंद जब भाषण दे रहे है, तब वहाँ मौजूद सभी लोग इसे चुपचाप सुनते रहे। 11 सितंबर से शुरू हुआ यह सम्मेलन ठीक 17 दिनो के बाद यानि 27 सितंबर को खत्म हुआ। इन 17 दिनो में स्वामी विवेकानंद पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गए थे। इसके साथ-साथ उन्होने विश्व में भारत का मान भी बढ़ाया था। धर्म सम्मेलन खतम होने के बाद स्वामी विवेकानंद ने विश्व के कई देशो की यात्रा की। स्वामी जिस देश में जाते वहाँ उनका आदर और सम्मान के साथ स्वागत किया जाता। इसलिए वर्तमान में स्वामी विवेकानंद ना सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।

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स्वामी विवेकानंद द्वारा किए गए मुख्य कार्य

स्वामी जी ने मनुष्य जाती की सेवा करी थी। इसके साथ-साथ उन्होने समाज में फैली कुप्रथाओं का विरोध करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होने अशिक्षा, गरीबी और भुखमरी को देश से दूर हटाने के प्रयास किए थे। स्वामी विवेकानंद अक्सर कहा करते थे कि मंदिरों में दान देने के बजाय भूखे लोगों को खाना खिलाना जरूरी है। उनका मानना था कि हर मनुष्य के मन में सेवा की भावना होनी चाहिए। इसलिए उन्होने 5 मई 1897 को कलकत्ता के वेल्लूर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

वर्तमान में इस रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएँ पूरे विश्व में स्थित है। इस मिशन का मुख्य उदेश्य यह था कि भारतीय लोग आध्यात्मिकता के मार्ग को अपनाए और जीवन में उन्नति करे। जब लोग यह दोनों कार्य अपनाएँगे तो उसके अंदर समाजिक जागरूकता आएगी। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद ने भारत में रामकृष्ण मठ और बेलूर मठ जैसे अनेक मठो की स्थापना करी थी। स्वामी विवेकानंद ने आध्यात्मिक और धार्मिक शिक्षाओं का प्रसार पूरे भारत देश में किया था।

उन्होने महिलाओं का सम्मान और उत्थान करने के लिए कई प्रयास किए थे। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि महिलाओ की उन्नति के बिना देश का विकास करना मुश्किल है। वो भारतीय संस्कृति तथा पाश्चात्य संस्कृति के समन्वय स्थापित करना चाहते थे। स्वामी जी भारत में छुआछूत और जाति प्रथा को खतम करना चाहते थे। इसलिए तो उन्होने छुआछूत, जाति प्रथा और समाज में फैले ऊँच-नीच के भेदभाव का विरोध किया था। उनके मुताबिक दुनिया के हर मनुष्य को सामाजिक समानता मिलनी ही चाहिए। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता पर बल दिया था। 

स्वामी विवेकानंद का निधन

स्वामी जी काफी ज्यादा परिश्रमी थे। जिसकी वजह से उनका स्वास्थ्य अच्छा नही रहता था। अंत में 4 जुलाई 1902 में ही स्वामी विवेकानंद ने जीवन की आखरी साँसे ली। स्वामी जी का अंतिम संस्कार बेलूर मठ में किया गया था। इस समय स्वामी जी की उम्र केवल 39 वर्ष थी। परंतु इतनी कम ज़िंदगी में भी उन्होने एसा कमाल कर दिया जो कोई लंबा जीवन गुजारने के बाद भी ना कर पाता। अगर हम यह कहे तो गलत नहीं होगा कि स्वामी विवेकानंद ने अपना जीवन पूरी तरह से इस देश को समर्पित कर दिया था।

 

निष्कर्ष 

स्वामी विवेकानंद ने धर्म की सही व्याख्या देते हुए कहा था कि सच्चा धार्मिक व्यक्ति वह नहीं है जो सबसे ज्यादा भगवान को दान दे। बल्कि सच्चा धार्मिक व्यक्ति तो वह है, जो भूखों को अन्न दे और दुखियों के दुख दूर करे।इसलिए तो स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष बार-बार नही आते बल्कि सदियो में एक-बार आते है। ऐसे महापुरुषों को हमें कभी भूलना नहीं चाहिए। हमे ऐसे लोगो की सही कद्र करके उनके जीवन का अनुसरण करना चाहिए। क्योकि ऐसे लोगो की हर चीज़ में सफलता और हर बात में सच्चाई होती है। (Essay on Swami Vivekananda in Hindi)

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