(2022) मेरा विद्यालय पर निबंध – My School Essay in Hindi

विद्यालय यानि एक ऐसा स्थान जहां बच्चो के व्यक्तित्व को आकार दिया जाता है और संस्कार द्वारा उनकी ज़िंदगी में बदलाव लाया जाता है। यहाँ पर बच्चे पढ़ते है, सीखते है और खेलते है। बच्चो को हर तरह का ज्ञान विद्यालय में दिया जाता है। इसलिए तो विद्यालय को ज्ञान का मंदिर कहा जाता है। एक बच्चे के अंदर छिपी प्रतिभा को सिर्फ विद्यालय ही खोज सकता है, क्योकि एक बच्चा कक्षा में कई खेल-कूद और सांस्कृतिक कार्यक्रमो में भाग लेता है, जिससे शिक्षक को पता चल जाता है कि बच्चे की क्या प्रतिभा है।

 

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एक विद्यालय का स्थान

हमारे देश में सदियो से विद्यालय की परंपरा चलती आ रही है। उस समय लोगो को गुरु के पास जाकर शिक्षा लेनी पड़ती थी, जिसे गुरुकुल कहा जाता था। बड़े-बड़े राजाओ को भी अपनी शान और वैभव छोड़कर गुरुकुल में जाना पड़ता था। अरे श्रीकृष्ण और श्रीराम भी शिक्षा के लिए गुरुकुल आश्रम में गये थे। इसलिए भारत में गुरू का स्थान ईश्वर और मां-बाप से भी ऊंचा है।

उसके बाद शिक्षा में कई बदलाव आए और भारत सरकार ने भी इस पर कई योजनाए और कानून बनाए।इसमें राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005 और शिक्षा का अधिकार-2009 बनाया गया था। जिसके तहत एक विद्यालय की बनावट और आस-पास का वातावरण शांतिपूर्ण और प्रदूषण से मुक्त होना चाहिए। ऐसी कई आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर यह कानून बनाए गए थे। इन दोनों कानून ने छात्रो के विकास में  महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इसके अलावा विद्यालय मे खेल-कूद का एक मैदान या बगीचा होना भी जरूरी है, क्योकि बच्चे जब ज्यादा पढ़ाई करके उब जाए तो विद्यालय के मैदान में खेल कर वापस उनमें पढ़ाई का जोश आ जाए। इस तरह अगर एक विद्यालय में यह सब चिजे हो तो बच्चो का भी मन पढ़ाई में लगा रहेगा।  

 

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विद्यालय के प्रकार

विद्यालय के मुख्य चार प्रकार है । आँगनवाड़ी, प्राथमिक विद्यालय, माध्यमिक विद्यालय और उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय

आँगनवाड़ी :

आँगनवाड़ी यानि एक छोटा सा केन्द्र जो शहर और गाव के कई गली-मुहल्ले में होता है। इसमें मुख्य तौर पर छोटे-छोटे बच्चो को शिक्षा दी जाती है। बच्चे यही से अपने परिवार से दूर रहना सीखते है। इसके अलावा भी बच्चो को कई आधारभूत चीजों का ज्ञान दिया जाता है। आँगनवाड़ी में बच्चो को ज्यादा देर तक नहीं पढ़ाया जाता, बल्कि कुछ घंटो के लिए ही बच्चो को शिक्षा दी जाती है। आँगनवाड़ीयो को खर्च सरकार द्वारा दिया जाता है।

प्राथमिक विद्यालय :

आँगनवाड़ी के बाद बच्चो को प्राथमिक विद्यालय में भेजा जाता है। यहा पर प्रथम क्लास से लेकर पाँचवी क्लास तक बच्चो को शिक्षा दी जाती है। इसके अलावा प्राथमिक विद्यालय में छात्रो को जीवन के मुख्य तौर-तरीके सिखाये जाते है।

माध्यमिक विद्यालय :

माध्यमिक विद्यालय में छात्रो को छठी से लेकर आठवीं तक शिक्षा दी जाती है। यहाँ पर छात्रो को जीवन के सभी उपयोगी विषयो की जानकारी और संस्कार दिये जाते है।

उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय :

उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय में छात्रो को नौंवी से लेकर बारहवीं तक शिक्षा दी जाती है। यहाँ छात्रो को अनुशासन सिखाया जाता है, जिससे वो अपने आप ही पढ़ाई करने लगते है। इसके अलावा इस समय उन पर नौकरी या और भी कई ज़िम्मेदारी होती है।

 

एक विद्यालय में होने वाली सुविधाएँ

एक विद्यालय में कुछ सुविधा होनी जरूरी है। जैसे कि विद्यालय में पानी की व्यवस्था होनी चाहिए और लड़का-लड़की के लिए अलग-अलग शौचालयों की व्यवस्था होनी चाहिए। विद्यालय में लाइब्रेरी की सुविधा होनी चाहिए, जिससे छात्र शांत और अच्छे वातावरण में पढ़ाई कर सके। आज का युग कंप्यूटर का युग है, इसलिए एक कंप्यूटर क्लास होना जरूरी है।

शिक्षकों के बैठने के लिए रूम और छात्रो के बैठने के लिए क्लास जरूरी है। और इन दोनों में टेबल और कुर्सी की अच्छी व्यवस्था होनी जरूरी है। सभी क्लास में ब्लैक बोर्ड और क्लास के बाहर कूड़ादान भी जरूरी है, ताकि विद्यालय में गंदगी ना फैले। इसके अलावा एक सभा-खंड भी होना चाहिए, जहां सांस्कृतिक कार्यक्रम या उत्सवों का आयोजन हो सके। विद्यालय में खेलने के लिए एक मैदान या बगीचा का होना भी जरूरी है। और ऐसी कई सुविधाए है, जो एक विद्यालय में होनी बहुत जरूरी है।

 

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विद्यालय के शिक्षक और प्रधानाचार्य

अगर किसी व्यक्ति के सामने शिक्षक और भगवन दोनों है और उसे कहा जाए कि इनमें से किसी एक के चरण स्पर्श करे तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? इसका जवाब महान कवि कबीरदास जी ने क्या खूब लिखा है कि हमें पहले शिक्षक के चरण को स्पर्श करना चाहिए। क्योकि भगवन तक पहुंचने का रास्ता हमें एक शिक्षक ही सिखा सकता है। शिक्षक ही छात्रो को सही ज्ञान देकर भगवान तक पहोचाता है। इसलिए शिक्षको के बिना विद्यालय की कल्पना करना मुश्किल है। हमारेशिक्षक बच्चो के प्रति सहानुभूति जताने वाले होते है। वो पहले एक विषय को पूरी गहराई से समझते है और उसके बाद छात्रो को समझाते है।

हर शिक्षक के पढ़ाने का तरीका अलग होता है, लेकिन उनका लक्ष्य एक ही होता है। विद्यालय की प्रतिष्ठा प्रधानाचार्य के हाथ में होती है। उनका अच्छा कार्यभार विद्यालय को ऊंचाइयों पर पहोचाता है। प्रधानाचार्य और शिक्षक हमेशा छात्रो को कुछ नया करने की सलाह देते है। यह लोग हमें चलने का सही रास्ता बताते है। कई बार वह छात्रो को मारते है, लेकिन नीचा दिखाने के लिए नहीं बल्के ऊपर उठाने के लिए और उनको सफल बनाने के लिए। इसलिए कभी छात्रो को शिक्षको की मार का बुरा नहीं मानना चाहिए। सच मे, शिक्षक और प्रधानाचार्य विद्यालय के ह्रदय है।

 

विद्यालय मे होने वाले कार्यक्रम और प्रतियोगिताएँ 

सिर्फ पुस्तक ज्ञान से छात्रो का विकास नहीं हो सकता है। इसलिए विद्यालय में पढ़ाई के साथ-साथ और भी कई कार्यक्रम और प्रतियोगिताएँ की जाती है। वर्ष के महत्वपूर्ण त्योहार जैसे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, नव वर्ष, दिवाली, होली, क्रिसमस, योग दिवस, वार्षिक समारोह, शिक्षक दिवस, गांधी जयंती, संस्थापक दिवस के दिन विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इन त्योहारो को छात्र धूम-धाम से मनाते है। वाद-विवाद, चित्र-कला और भाषण जैसी प्रतियोगिता का आयोजन विद्यालयो में किया जाता है।

इसके अलावा खेल-कूद की प्रतियोगिता जैसे स्केटिंग, नृत्य, गायन, स्काउटिंग, तैराकी आदि खेलो का आयोजन भी किया जाता है, जिससे छात्रो बहुत खुश होते है। कई बार अलग-अलग विद्यालयो के बीच प्रतियोगिताएँ होती है, जिसमें कई छात्र बढ़-चढ़कर भाग लेते है और पुरस्कार जीतते है। इन सब कार्यक्रमो और प्रतियोगिताओ से छात्रो का शारीरिक, मानसिक और सांस्कृतिक विकास होता है। जिससे विध्यार्थीओ के अंदर आत्म-विश्वास बढ़ता है।

 

विद्यालय में अनुशासन जरूरी

बच्चो से लेकर बूढ़ो तक और परिवार से लेकर समाज तक अनुशासन जरूरी है। क्योकि अनुशासन हमें सफलता की और ले जाता है। हर सफल मनुष्य ने अनुशासन को अपनाया था, इसका इतिहास गवाह है। और अनुशासन तो विद्यालय की नींव है।

बच्चो को अनुशासन के महत्त्व को समझना जरूरी है। इसके लिए हर रोज़ विद्यालय में नाखून और दाँतों का निरिक्षण करना चाहिए। इसके अलावा उनको स्वच्छ रहना सीखाना चाहिए। क्योकि अस्वच्छ छात्रो के विचार भी अस्वच्छ होते है। इसलिए अगर कोई छात्र अनुशासन का उल्लंघन करे तो उसे जरूर दंड देना चाहिए। क्योकि अगर आज उसको अनुशासन नहीं सिखाया तो कल वो एक समाज और देश के लिए खतरा है।

 

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निष्कर्ष

अब अगर कोई हमसे पूछे कि विद्यालय ने हमें क्या सिखाया है, तो हमारा जवाब यह होना चाहिए कि विद्यालय ने हमें दुनिया में रहना और उसका सामना करना सिखाया है। सहानुभूति और आत्म-विश्वास की शक्ति मुझे मेरे विद्यालय ने दी है। देश को आगे बढ़ाने की और पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन करने की सोच मेरे विद्यालय ने मुजे दी है। असफलताओ से ना डर के उसका सामना करना विद्यालय ने मुजे सिखाया है। इतना सब कुछ जानने के बाद शायद अब आप लोगो को पता चल गया होगा कि आखिर एक मनुष्य की ज़िंदगी में विद्यालय का क्या महत्व है। (My School Essay in Hindi)

 

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