जल प्रदुषण पर एक विचारशील निबंध- Jal pradushan par nibandh

मनुष्य की जीवन ज़रूरियात चीज़ों में सबसे पहले जल है। जल के बिना इस सृष्टि की कल्पना करना बहुत मुश्किल है। इसी कारण जल को अमृत कहा जाता है। लेकिन यही अमृत में जब हानिकारक और खतरनाक पदार्थ मिल जाए तो उसे विष बनने में देर नहीं लगती है। इसी को जल प्रदूषण कहते है। मानव द्वारा उत्पन्न कचरा जब पानी में मिलता है, तब उसकी रसायनिक, भौतिक और थर्मल विशेषता को कम कर देता है। उसके साथ-साथ पानि में मौजूद ऑक्सीजन को भी कम कर देता है। इससे पानी के अंदर रहने वाले जीव को भी बहुत भुगतना पड़ता है। इसके बावजूद भी हम पानी को प्रदूषित करने का एक भी मौका नहीं छोड़ते है’।

आज पृथ्वी पर जल प्रदूषण एक वैश्विक समस्या बन गया है। अनेक बीमारियाँ और करोड़ो लोगों की मौत इसके कारण हुई है। आंकड़ो की बात करे तो जल प्रदूषण से विश्व में करीब 14000 लोगो की मोत प्रतिदिन हो रही है और भारत में 580 लोग प्रतिदिन अपनी जान गवा रहे है।

 

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जल का महत्व  

दुनिया में जल तो बहुत ज्यादा मात्र में उपलब्ध है, लेकिन पीने लायक जल की मात्रा 2 से 7 प्रतिशत ही है। बाकी का पानि खारा है जो पीने लायक नहीं है। 2 से 7 प्रतिशत पीने लायक पानी में भी तीन चौथाई जल तो हिम नदी और बर्फीली चट्टानों के रूप में है। इसका मतलब कि पृथ्वी पर पीने लायक पानी बहुत कम है।जबकि मनुष्य के शरीर में 60 फीसदी और वनस्पतियों में 95 प्रतिशत जल होता है। दुनिया में बसे हर जीव के लिए स्वच्छ जल का होना अति-आवश्यक है। 

 

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जल प्रदूषण क्या है 

मनुष्य अपने दैनिक जीवन के दरमियान विभिन्न क्रिया से जल के जैविक, भौतिक और रासायनिक गुणो को जब नुकसान पहोचाता है, तो ऐसे जल को प्रदूषित जल कहते है। किसी भी मनुष्य के अच्छे स्वास्थ्य के लिए जल का स्वच्छ होना अति-आवश्यक है।

नुष्य जल का प्रदूषण आज से नहीं बल्कि आदिकाल से ही करता आया है। चलिये जल प्रदूषण को हम जापान के एक उदाहरण से समझते है। साल 1953 में जापान के मिनिमाता शहर में एक बड़ी जबरदस्त घटना हुई। शहर का एक रसायन उद्योग विनाइल क्लोराइड नाम के पदार्थ का निर्माण करता था। लेकिन विनाइल क्लोराइड को बनाने के लिए एक घातक पदार्थ मरक्यूरिक क्लोराइड का बड़ी मात्रा में उपयोग किया जाता था। यह एक ऐसा पदार्थ है जो मानवो की जान भी ले सकता है। लेकिन इन उधोग वाले अपना बचा हुआ सारा जल एक बड़ी जिल में डाल देते थे।

अब हुआ यू की इस जिल में रहने वाली मछलियाने इस जहरिला पदार्थ को खा लिया। इसके कारण कई मछलियो की मौत हो गयी और उन मरी हुई मछलियो को मछुआरे ने पकड़ लिया। उसके बाद इन मछलियो को खाने वाले सब लोगो को काफी गंभीर बीमारी हुई और 43 से ज्यादा लोगो की मोत हो गई। कुछ दिन बाद जाँच-पड़ताल से पता चला कि इन सभी ने यहाँ पाई जाने वाली मछलियों का सेवन किया था। जल प्रदूषण की इस दुर्घटना ने दुनिया भर का ध्यान अपनी और खींचा था। हमारे देश में केरल की चालियार नदी में भी मरकरी युक्त दूषित जल पाया गया था। लेकिन इससे कोई जान हानी नहीं हुई थी।

 

स्वच्छ जल की गुणवत्ता मापदंड

जल की शुद्धता को पहचान ने के लिये 1971 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुछ ऐसे मापदंड तैयार किए, जिनसे हम पता लगा सकते है कि जल कितना प्रदूषित है। w.h.o के अनुसार पीने का पानी स्वच्छ, स्वादयुक्त और गंधरहित होना चाहिए। इसलिए स्वच्छ जल की गुणवत्ता को तीन वर्गो में बाटा जाता है।  भौतिक मापदंड, रासायनिक मापदंड और जैविक मापदंड।

भौतिक मापदंड में रंग, प्रकाशवेधता, तापमान, संवहन और कुछ ठोस पदार्थ शामिल होते है। जिसके द्वारा जल की गुणवत्ता का मापन किया जा सकता है। रासायनिक मापदंड के अंदर घुला हुआ ओक्सीजन, पी.एच.मान, खारापन या क्षारीयता, रेडियोधर्मी पदार्थ, क्रोमियम, भारी धातुएँ, मर्करी और सीसा द्वारा जल की गुणवत्ता का मापन किया जाता है। जैविक मापदंड के अंदर कोलीफार्म, वायरस, शैवाल और बैक्टीरिया द्वारा जल की गुणवत्ता का मापन किया जाता है।

 

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जल प्रदूषण के कारण

जल के प्रदूषण होने के कई कारण है, लेकिन बड़े-बड़े विद्धवानों और संशोधकों ने जल प्रदूषण के मुख्य दो कारण बताए है। एक प्राकृतिक और दूसरा मानव। 

  1. प्राकृतिक कारण 

प्रकृति भू-क्षरण यानि की मिट्टी के कटाव से पानी का प्रदूषित होना। इसके अलावा पेड़-पौधों की सड़ी हुई पत्तिया, मिट्टी और प्राणिया का मल-मूत्र जब जल के साथ मिश्रण होता है तब बड़े पैमाने पर जल का प्रदूषण होता है। जब पानी एक जगह काफी ज्यादा समय के लिए जमा हो जाए तो उसमें भी कैडमियम, सीसा, पारा और आर्सेनिक जैसे जहरीले पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है। इससे भी अधिक मात्रा में जल प्रदूषित होता है।

  1. मानवीय कारण 

प्रकृति के साथ-साथ मनुष्य का भी बड़ा हाथ है जल को प्रदूषित करने में। क्योकि मानवी अपने घर से ही जल को प्रदूषित करना शुरू कर देता है। मानव की अपनी कई गतिविधियों से जल को प्रदूषित करता है। घरेलू कार्यों जैसे खाना पकाना, नहाना, कपडे धोना और घर की सफाई करना। इन सब में पानी का भरपूर उपयोग किया जाता है। लेकिन इन कार्यो से निकला हुआ पानी काफी ज्यादा मात्रा में अपशिष्ट पदार्थों से भरा होता है और हम उस पानी को घरेलू नालियों में बहा देते है। जो अंत मे नदि और तालाब में जाकर जल को प्रदूषित करता है।

दूसरा है मानव मल। ऐसा माना जाता है कि मानव मल से जल में हो रहा प्रदूषण के लिए ही जल प्रदूषण शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया गया था। भारत में एक लाख से भी अधिक जनसंख्या वाले 142 नगर है। एक अनुमान से ये पता चला कि इन 142 नगरो में से मात्र 8 ही ऐसे नगर है, जिनमें मानव मल को ठिकाने लगाने की पूर्ण व्यवस्था है। 62 ऐसे नगर है जहाँ थोड़ी व्यवस्था है, और बाकी बचे 72 नगरो में मानव मल को ठिकाने लगाने की कोई भी व्यवस्था नहीं है।

पूरे विश्व की बात करे तो करीब 10 लाख व्यक्ति एक वर्ष में 5 लाख टन से भी ज्यादा मल उत्पन्न करते है। आपको जानकार हेरानी होगी की ये मल का अधिकांश भाग समुद्र और नदियों में डाला जाता है। इसलिए आज भी मानव मल से बड़ी मात्रा में जल प्रदूषित हो रहा है, क्योकि उसे ठिकाने लगाने की कोई उचित व्यवस्था नहीं है।

इसका तीसरा मुख्य कारण है औद्योगिक बहिःस्राव। आपने अक्सर देखा होगा कि उधोगों में जो उत्पादन होता है उसके साथ अनेक अनुपयोगी पदार्थ बचे रहते है। यही बचे हुए पदार्थ को औद्योगिक अपशिष्ट कहते है। उसमें अनेक तरह के तेल, अम्ल, वसा, क्षार, जैसे विषैले तत्त्व ओर रासायनिक पदार्थ शामिल होते है। ऐसे पदार्थ जल में मिलकर अधिक मात्रा में जल को प्रदूषित करते है। रासायनिक उद्योग, चमड़ा उद्योग, कागज उद्योग, चीनी उद्योग, शराब उद्योग, वस्त्र उद्योग, और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग ज्यादा मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न करते है। जैसे कि कानपुर में चमड़े के कारखानों द्वारा कचरे को गंगा नदी में फेकने से कानपुर के 10 km दूर तक गंगा नदी का रंग बिलकुल बदल चुका था। 

चोथा मुख्य कारण है कृषि बहिःस्राव। वर्तमान में ज्यादा-से-ज्यादा उत्पादन प्राप्त करने के लिए कृषि में कई तरह की पद्धतियों का प्रयोग किया जा रहा है। हरित क्रांति इसी की देन है। इन नई-नई पद्धतियों से सिंचाई में तो वृद्धि हुई, लेकिन दूसरी तरफ रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं में भी वृद्धि हुई। इन दवाओ में अकार्बनिक फास्फेट और नाइट्रोजन होता है, जो बड़े खतरनाक पदार्थ है। यह भी जल को प्रदूषण करता है।

जब ऐसे पदार्थ जल स्रोतो में पहुँचते है तो जल में शैवाल मर जाती है। शैवाल के मृत होने से अपघटक बैक्टीरिया भारी संख्या में उत्पन्न होते है। जो धीरे-धीरे जल में ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर देता है। इससे जलीय जीवों की मृत्यु होने लगती है और यही से जल बड़ी मात्रा में प्रदूषित होता है। 

पांचवा मुख्य कारण है तापीय प्रदूषण। विभिन्न बम और रियेक्टर में ऊष्मा यानि गर्मी काफी ज्यादा होती है। इस गर्मी को कम करने के लिए नदी और तालाबों के जल का उपयोग किया जाता है। उनकी ठंडा होने की प्रक्रिया के बाद उपयोग किया हुआ जल फिर से जल स्रोतों में डाला जाता है। इससे जल स्रोतों के ताप में वृद्धि होती हे और जल प्रदूषित हो जाता है। 

छठा मुख्य कारण है तैलीय प्रदूषण। नदी और अन्य जल स्रोतों में तैलीय पदार्थों के मिलने से तैलीय प्रदूषण होता है। एक देश से दूसरे देश तक तेल पहोचाने के लिए बड़े-बड़े जहाजों का उपयोग किया जाता है। लेकिन कई बार इनके साथ दुर्घटना हो जाती है और जहाजो का तेल समंदर में मिल जाता है। कई बार तो आग भी लग जाती है जैसे अमरीका की क्वाहोगा नदी और भारत में बिहार राज्य के मुंगेर के पास गंगा नदी में भयंकर आग लग चुकी है।

आंकड़ो के मुताबिक लगभग प्रतिवर्ष पेट्रोलियम 50 लाख से 1 करोड़ टन से भी ज्यादा समुद्र में मिल जाता है।इसके अलावा भारत के कई राज्यो में मानव और पशुओं के शव को नदियों में बहा दिया जाता है। इसके बाद वो शव सड़ के पानि में गल जाता है और पानी में जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करता है। और ऐसे कई कारण है, जिनसे जल प्रदूषित होता है।

 

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जल प्रदूषण के प्रभाव

भारत में नदियो को मातृ-शक्ति का दर्जा दिया जाता है और पूजा जाता है। भारत की पाँच नदियों ने पंजाब की भूमि को हरी-भरी फसलों की उपहार देकर वहाँ के किसानों की झोली भर दी। लेकिन फिर भी आज हम सभी भारत की नदियो और जल स्त्रोतों को बड़े पैमाने पर प्रदूषित क्यो कर रहे है? किसी भी झील, नदी या तालाब में पोषक तत्वों की संख्या पानी की गुणवत्ता, आस-पास की मिट्टी और उसमें उपस्थित अपशिष्ट पर निर्भर करती है। जल स्त्रोत का पानी अगर थोड़ा भी प्रदूषित होता है तो उसके आसपास रहने वाले प्रत्येक जीवन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

तो आइए जानते है कि क्या-क्या प्रभाव जल प्रदूषण का हम पर पड़ता है ।

  1. मानव पर प्रभा

किसी भी जल का प्रदूषित होना मानवो के लिए सबसे ज्यादा खतरा है। W.H.O की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में हर वर्ष 1,50,00000 व्यक्ति प्रदूषित जल के कारण मर जाते है। विकसित देशो की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहाँ यहा के सारे रोगियो में से 50 फीसदी रोगी ऐसे है जिनके रोग का कारण प्रदूषित जल है। और ये तो विकसित देशों की स्थिति है। 

अगर हम विकासशील और अल्प-विकसित देशो के आंकड़े जानेगे तो हम और भी चोंक जाएंगे। ऐसे देशो के कुल रोगी दर्दीओ में से 80 प्रतिशत रोगों की जड़ प्रदूषित जल होता है। एक अनुमान के मुताबिक भारत के 34000 गांवो के लगभग 2.5 करोड़ से भी ज्यादा व्यक्ति हैज़े नामक बीमारी से पीडि़त है, जो जल के प्रदूषण से होती है। 

राजस्थान के कई आदिवासी गांवों में करीब 1,90,000 से ज्यादा लोग गंदे तालाबों का पानी पीते है। इससे उन्हे नास नामक रोग हो रहा है। इसके अलावा पीलिया, मियादी बुखार, हैजा, पोलियो, पेचिस, वायरल फीवर आदि खतरनाक बीमारियां जल प्रदूषण होती है।

  1. जलीय जीवो ओर जन्तुओं पर प्रभाव

जल प्रदूषण से अगर मानव के बाद किसी पर बुरा प्रभाव पड़ता है, तो वो जलीय जीव-जन्तु है। जल प्रदूषण से जल में शैवाल की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे पनि में ऑक्सीजन मात्रा कम हो जाती है। जब ऑक्सीज़न की मात्रा कम होती है तो जलीय जीवो की मृत्यु होगी। एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 1940 में एक लीटर पानी में ऑक्सीजन की मात्रा 2.5 घन सेमी थी, जो वर्तमान में घट कर 0.1 घन सेमी रह गई है।

जल प्रदूषण के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले जीव-जन्तुओं में मछलियाँ सबसे पहले है। इसको हम लखनऊ के एक उदाहरण से समझेंगे। लखनऊ की मुख्य नदीओ में से एक यानि गोमती नदी। अब हुआ यू की इस नदी के आस-पास वाले कारखाने हमेशा प्रदूषित जल इस नदी में छोडते थे। लेकिन एक बार जल इतना ज्यादा प्रदूषित हो गया की गोमती नदी के किनारे पर हजारो की संख्या में मरी हुई मछलियाँ पाई गई।मरी हुई मछलियो की संख्या इतनी ज्यादा थी कि उस नदी का पूरा किनारा उनसे भर गया था।

 

भारत और विश्व में जल प्रदूषण का समाधान

संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें उन्होने कहा कि अगर पर्यावरण को बचाने के लिए जल्द ही कोई कठोर कदम नहीं उठाए गए तो साल 2050 तक सिर्फ जल और वायु प्रदूषण की वजह से लाखों-करोड़ो लोगों की मौत हो जाएगी। हर साल विश्व में करीब 90 लाख लोगों की मौत सिर्फ जल  और वायु प्रदूषण से होती है। इससे आप आसानी से अंदाजा लगा सकते है कि 2050 तक ये कितना खतरनाक बन जाएगा।

जल प्रदूषण को रोकने लिए हमें सबसे पहले उसको बढ़ावा देने वाली प्रक्रियाओं पर ही रोक लगा देनी होगी।जैसे किसी भी प्रकार के अपशिष्ट युक्त जल को जलस्रोतों में नहीं मिलने दिया जाएगा। उसके बाद घरों से निकलने वाले दूषित जल और वाहित मल को हमें संशोधन संयन्त्रों में भेजना चाहिए। ताकि उसका पूर्ण उपचार करके फिर से जलस्रोतों में छोड़ा जाए। 

पीने लायक पानी को हर प्रकार की गंदगी ओर अपशिष्ट से रोका जाना चाहिए। इसके लिए हमें लोगो को जल स्रोतों के आस-पास गंदगी करने पर और नहाने, कपड़े धोने आदि पर भी रोक लगानी होगी। उसके साथ-साथ नदी-तालाबो में पशुओं को स्नान कराने पर भी रोक लगानी चाहिए।

कृषि कार्यों में भी आवश्यकता से अधिक कीटनाशक दवाओ के प्रयोग को हमें कम करना चाहिए। कई जगहो पे कीटनाशक दवाओ को एकदम से रोकना संभव नहीं है। तो ऐसी जगहो पर हमें नियंत्रित ढंग से इसका उपयोग करना चाहिए। 

इसके अलावा हमें समय-समय पर जलाशयों के अंदर अनावश्यक जलीय पौधों और कीचड़ को निकालकर जल को स्वच्छ बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। मछलियों की कुछ ऐसी भी जाती है जो मच्छरों के अण्डे, लार्वा और कचरे को खा जाती है। हमें एसी मछलियों को पालना होगा जिस से जल के अंदर स्वच्छता कायम रहे।

सबसे बड़ा काम भारत और पूरे विश्व में जल प्रदूषण के लिए जागरूकता बढ़ानी होगी। हमें लोगो को बताना चाहिए कि उसकी वजह से कितने लोग मर रहे है। उसके प्रभाव से कितना नुकसान हो रहा है। अगर लोगों को इसके बारे में पता होगा तो वे कम-से-कम जल को प्रदूषित करेंगे। इसके अलावा हमें कूड़े-कचरे को किसी गड्ढे में डालना चाहिए।

उधोगों की विभिन्न औद्योगिक गतिविधियों से बड़े पैमाने पर जल दूषित होता है। लेकिन उसमें भी कुछ उद्योगों से उत्पन्न होने वाला जल अत्यंत प्रदूषणकारी होता है। जबकि कुछ उद्योगों का जल इतना ज्यादा प्रदूषित नहीं होता। जैसे बायलर ब्लोडाउन और शीतलन से निकलने वाला जल लगभग सामान्य होता है, क्योकी ऐसे जल को या तो किसी कार्य में उपयोग किया जा सकता है या ऐसे जल को पुनर्चक्रित किया जा सकता है।

लेकिन हमें हर उधोग से निकालने वाले जल को या तो पुनर्चक्रित करना होगा या उसको स्वच्छ जलस्रोतों में मिलने से रोकना होगा। भू-क्षरण यानि मिट्टी के कटाव की वजह से भी जल प्रदूषित होता है। उसके लिए हमें ज्यादा-से-ज्यादा पेड़-पौधे लगाने होंगे। क्योकि पेड़-पौधे ही मिट्टी के कटाव को रोक सकते है। हमे समझना होगा कि जल प्रदूषण का निवारण किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए हमें खुद से ही प्रयास करने होंगे।

 

निष्कर्ष

उम्मीद करते है कि इतना सब कुछ जानने के बाद अब आपको पता चल गया होगा कि जल प्रदूषण विश्व के लिए कितनी गंभीर समस्या है। क्योकि अगर इस समस्या से दुनिया की महासत्ता कहने वाले तीन देश अमेरिका, रशिया और चीन भी डर जाए तो आप समज सकते है कि जल प्रदूषण कितनी बड़ी समस्या है।इसलिए तो बड़े-बड़े विधवान कहते है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा। षड यह भविष्यवाणी सच ना हो जाए। इसलिए आज से ही जल को प्रदूषित करना कम कर दे और इसके बारे में लोगो को भी जागरूक करे। 



FAQ

Q : जल प्रदूषण क्या है ?

ANS : जब पानी में हानिकारक और खतरनाक पदार्थ मिल जाए तो उसे जल प्रदूषण कहते है। 

Q : जल को प्रदूषण करने वाले मुख्य कारण कौन से है?

ANS : जल को प्रदूषित करने वाले 2 मुख्य कारण है, प्राकृतिक कारण और मानव कारण

Q : जल प्रदूषण कैसे रोका जाए ?

ANS : इस आर्टिकल में हमने कैसे ऐसे उपाय बताए है, जिससे हम जल प्रदूषण को रोक सकते है। तो आप इस निबंध को पढ़ सकते है।


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